घड़ा बड़ा है सीने में
तेरी याद से भरता जाता है
बाहर कभी दिखता नहीं
बस आखों से छलकता है
साथ भी रखना चाहूँ मैं
पर भार घड़े का ज्यादा है
अँधेरे में, अकेले में
ये मुझे डुबाये जाता है
आजा माँ तू वापस आजा
एक आखिरी बोल सुना दे
इस मर्ज की दवा बता दे
आकर मुझको गले लगा ले
इस घड़े का वजन उठा ले
नहीं उठाया जाता अब
दर्द देता है ये घड़ा