November 28, 2016

वो मुझसे दूर क्या गयी 
उसकी तासीर ही बदल गयी
पहले बातों से दिल लुभाती थी
अब यादों से सुइयाँ चुभाती है 

मुलाकात से पहले ही 
जुदाई उसकी तक़दीर में थी 
तब खुशकिस्मत था कि अंजान नहीं 
अब बदकिस्मत हूँ कि पहचान है 

जब संग थी तो मुस्कान थी वो होठों पर
अब संग नहीं, तो कलम की शायरी बन गयी

वो मुझसे दूर क्या गयी
भावनाएँ उथल-पुथल कर गयी
यहाँ थी तो चेतना का संचार था
वहां है, तो बस वेदना ही वेदना है

November 8, 2016

हल्का सा एक झोंका, खुशबू ले के आया
पंखुरियों के पीछे निकल पड़े हम

वह झोंका आंधी में कब बदला पता नहीं

पंखुरियाँ राख बन गयी
घुटनों पर गिर गए हम

July 4, 2016

मैराथन

जज़्बा बुलंद है मंजिल पार निकलने का
एक कहानी डोली में बैठ चली है
राहें हैं अंजान, बस रू
हो‌ं का संग है 



रुक जाना नहीं,   थम जाना नहीं